अश्वगंधा की खेती (Ashwagandha Ki Kheti) कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली औषधीय फसल है। अश्वगंधा की खेती कर किसान लागत का तिगुना लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अन्य फसलों की अपेक्षा प्राकृतिक आपदा का खतरा भी अश्वगंधा की खेती (Ashwagandha Ki Kheti) पर कम होता है। अश्वगंधा की बोआई के लिए जुलाई से सितंबर का महीना उपयुक्त माना जाता है। वर्तमान समय में पारंपरिक खेती में हो रहे नुकसान को देखते हुए अश्वगंधा की खेती (Ashwagandha Ki Kheti) किसानों के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
Ashwagandha Ki Kheti - क्या है अश्वगंधा
अश्वगंधा एक औषधि है। इसे बलवर्धक, स्फूर्तिदायक, स्मरणशक्ति वर्धक, तनाव रोधी, कैंसररोधी माना जाता है। इसकी जड़, पत्ती, फल और बीज औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है।
उपयुक्त जलवायु
अच्छे जल निकास वाली बलुई, दोमट मिट्टी या हल्की लाल मृदा, जिसका पीएच मान 7.5 से 8 हो, प्रयुक्त मानी जाती है।
बीज की मात्रा
नर्सरी के लिए प्रति हेक्टेअर पांच किलोग्राम व छिड़काव के लिए प्रति हेक्टेअर 10 से 15 किलो बीज की जरूरत पड़ती है। बोआई के लिए जुलाई से सितंबर तक का समय उपयुक्त माना जाता है।
बीज शोधन
बीज को डायथेन एम-45 से उपचारित करते हैं। एक किलोग्राम बीज को शोधित करने के लिए 3 ग्राम डायथेन एम. का प्रयोग किया जाता है।
रोपण की विधि
रोपाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि दो पौधों के बीच 8 से 10 सेमी की दूरी हो तथा पंक्तियों के बीच 20 से 25 सेमी की दूरी हो। बीज एक सेमी से ज्यादा गहराई पर न बोएं।
उर्वरक का प्रयोग
बोआई से एक माह पूर्व प्रति हेक्टेअर पांच ट्रॉली गोबर की खाद या कंपोस्ट की खाद खेत में मिलाएं। बोआई के समय 15 किग्रा नत्रजन व 15 किग्रा फास्फोरस का छिड़काव करें।
प्रजाति एवं सिंचाई
छटाई व निराई
फसल सुरक्षा
उत्पादन
Ashwagandha Ki Kheti के क्या है लाभ
महत्वपूर्ण बातें
- अच्छी जल निकास का प्रबंधन करें |
- बलुई दुमट भूमि का चयन करें |
- समय पर बोनी करें (अगस्त के तीसरे सप्ताह से सितम्बर के प्रथम सप्ताह तक).
- अच्छे एवं शीघ्र अंकुरण के लिए भूमि में उपयुक्त नमी रखें |
- कतारों में 30 से.मी. की दुरी पर कतार से कतार एवं 4 – 5 से.मी. पौध की दुरी रखें |
- उचित बीज दर रखें (7 – 8 लाख प्रति हेक्टयर) आवश्यकता से ज्यादा पौध संख्या होने पर जड़ें पतली हो जाती है वहीँ कम पौध संख्या रखने पर जड़ें मोती, खोखली व कष्ठ्युक्त (फाइबरस) हो जाती है |
- बीजोपचार करें 20 – 25 दिन बाद छनाई करें एवं उचित पौध संख्या रखें |
- अनुशंसित मात्रा में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करें | 25 कि. नत्रजन 50 किलो स्फूर एवं 30 किलो पोटाश प्रति हेक्टयर बोते समय अवश्य डाले |
- अच्छी गुणवत्ता की जड़ों का उत्पादन लेने हेतु अच्छे गुणवत्ता वाले उन्नत जातियों के बीज जैसे जवाहर असगंध – 20 , जवाहर असगंध – 134 एवं राजविजय असगंध – 100 का उपयोग करें (उपरोक्त जातियों का बीज उधानिकी महाविधालय मन्दसौर में उपलब्ध) | फसल कटाई उपयुक्त अवस्था पर ही करें |
- गीली जड़ें पौधे से काटकर श्रेणीकरण कर देवें |
- मंडी में अच्छी कीमत प्राप्त करने के लिये जड़ों का श्रेणीकरण करके ही बेचे |
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जवाब देंहटाएंgoogle mera naam kya haiएक बार गूगल से पूछ के तो देखिये
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